स्वतंत्र व्यापार की नीति उस नीति को कहते हैं जिसके अंतर्गत विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं के आयात-निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाता। वैज्ञानिक रूप से स्वतंत्र व्यापार का सूत्रपात ऐडम स्मिथ के साथ हुआ जिन्होंने अपनी पुस्तक “An Enquiry into the Nature and Cause of Wealth of Nations” में स्पष्ट किया कि “यदि हम विदेश से किसी वस्तु को अपने देश की तुलना में सस्ता प्राप्त कर सकते हैं तो यह अच्छा है कि हम उस वस्तु को विदेश से ख़रीद लें और बदले में वह वस्तु दे दें जिसका उत्पादन हम लाभ के साथ कर सकते हैं।”
स्वतंत्र व्यापार श्रम – विभाजन का परिणाम है। श्रम – विभाजन विशिष्टिकरण को सम्भव बनाता है और विशिष्टिकरण से हम अपनी आय को अधिकतम कर सकते हैं। यही स्वतंत्र व्यापार का आधार है। वास्तव में, घरेलू श्रम – विभाजन का देश की सीमाओं के बाहर विस्तार ही अंतराष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। अंतराष्ट्रीय श्रम विभाजन इसलिए होता है कि प्रत्येक देश में उत्पत्ति के साधनों में भिन्नता होती है, इसलिए प्रत्येक देश में उत्पादन की सम्भावना भी अलग – अलग होती है। अतः प्रत्येक देश अपने संसाधनों को उन प्रयोगों में लगाता है जहां उसका तुलनात्मक लाभ अधिक होता है। इसी विचार का समर्थन करने हुए चेयरनेस (Cairness) ने कहा है “यदि विशेष लाभ के लिए राष्ट्र व्यापार करते हैं तो उनका स्वतंत्र व्यापारिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करना लाभों से वंचित रहना होगा।”
आर्थिक विचारों के इतिहास में प्रतिष्ठित सम्प्रदाय के उदय के साथ ही स्वतंत्र व्यापार का प्रारम्भ हुआ और यह नीति लगभग एक सदी तक विश्व के देशों पर छायी रही। विश्व में इंग्लैंड ने स्वतंत्र व्यापार का नेत्रत्व किया जिसके दो कारण थे – प्रथम तो यह की इंग्लैंड में सबसे अधिक औद्योगिक क्रांति हुई। दूसरा, इंग्लैंड में 1832 के सुधार क़ानून (Reform Act) ने व्यापारिक और औद्योगिक वर्गों को राजनीतिक शक्ति प्रदान कर दी।
स्वतंत्र व्यापार का अर्थ
स्वतंत्र व्यापार वो नीति है जिसके अंतर्गत अंतराष्ट्रीय व्यापार अथवा देशों के बीच वस्तुओं के आदान – प्रदान में कोई रोक नहीं लगाई जाती। ऐडम स्मिथ के अनुसार, “ स्वतंत्र व्यापार का आशय व्यापारिक नीति की उस प्रणाली से है जो घरेलू और विदेशी वस्तुओं पर कोई भेदभाव नहीं करती जिसके फलस्वरूप न तो विदेशी वस्तुओं पर अतिरिक्त कर लगाये जाते हैं और न घरेलू वस्तुओं को कोई रियायत दी जाती है।” इस प्रकार स्वतंत्र व्यापार में विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं की गतिशीलता में कोई बाधाएँ नहीं होती तथा विनिमय सामान्य रूप से होता है।
स्वतंत्र व्यापार के पक्ष में तर्क (The Case for Free Trade)
स्वतंत्र व्यापार श्रम – विभाजन का परिणाम है एवं श्रम – विभाजन से उत्पादकता में वृधि होती है। अंतराष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत ( जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम – विभाजन का परिणाम है ) वस्तुओं के उत्पादन और उसके फलस्वरूप वास्तविक आय में वृधि की जा सकती है। यही व्यापार का सबसे बड़ा लाभ है। सेमुएलसन के अनुसार, “ स्वतंत्र व्यापार आपस में लाभप्रद क्षेत्रीय श्रम – विभाजन का विस्तार करता है, समस्त राष्ट्रों के सम्भावित वास्तविक राष्ट्रीय उत्पादन में काफ़ी वृधि करता है तथा समूचे विश्व में उच्च जीवन-स्तर को सम्भव बनाता है।” हैबरलर ने इसी नीति का समर्थन करते हुए कहा कि स्वतंत्र व्यापार में समाजिक उत्पादन अधिकतम होना आर्थिक रूप से लाभदयकता की ओर संकेत करता है।”
स्वतंत्र व्यापार के पक्ष में निम्न तर्क दिए जाते हैं :
- अधिकतम उत्पादन — अंतराष्ट्रीय व्यापार में देश की श्रम – शक्ति एवं अन्य साधनों का वितरण तुलनात्मक लाभ के अनुसार हो जाता है जो श्रम – विभाजन का विस्तार है। श्रम – विभाजन से विशिष्टिकरण सम्भव होता है जिससे (i) दक्षता प्राप्त होती है, (ii) श्रमिकों कि योग्यता एवं क्षमता के अनुसार कार्यों का वितरण होता है, (iii) समय की बचत होती है, एवं (iv) नयी मशीनों के प्रयोग की प्रेरणा मिलती है। इन सबका परिणाम यह होता है की उत्पादन में वृधि होती है। कुछ विशेष प्राकृतिक सुविधाओं के कारण प्रत्येक देश कुछ विशेष वस्तुओं के उत्पादन में अधिक दक्ष होता है। जब देश स्वतंत्र व्यापार करते है तो पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत क़ीमत संयंत्र (Price Mechanism) अपने आप यह निर्धारित कर देता है की प्रत्येक देश उन वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टिकरण करता है जिनके उत्पादन में वह सबसे अधिक कुशल होता है एवं उन वस्तुओं का आयात करता है जो अपने देश की तुलना में सस्ते में प्राप्त कर सकता है।
- औद्योगिक तकनीकी में सुधार — स्वतंत्र व्यापार से प्रतियोगिता शक्ति में वृधि होती है एवं प्रतियोगिता के फलस्वरूप प्रगति एवं तकनीकी सुधारों को प्रोत्साहन मिलता है जिससे व्यापार करने वाले देशों की औद्योगिक तकनीक में भी सुधार होता है।
- एकाधिकारी शक्तियों पर नियंत्रण — प्रतियोगिता के फलस्वरूप मुक्त व्यापार का एक महत्वपूर्ण लाभ यह भी है की इससे देश में एकाधिकारी शक्तियाँ स्थापित नहीं हो पाती। यदि स्वतंत्र व्यापार न अपनाकर आयात कर लगा दिए जाते हैं तो बहुत-से उद्योगों में फ़र्मों अपने अनुकूलतम आकार को प्राप्त नहीं कर पाती जबकि उत्पादन में वृधि उनके लिए लाभप्रद होती है। इसका परिणाम होता है की एकाधिकार संघों का निर्माण होने लगता है जिससे सापेक्षिक रूप से क़ीमतें बढ़ने लगती हैं, किंतु स्वतंत्र व्यापार से बाज़ार का विस्तार बढ़ता है, प्रतियोगिता को बल मिलता है, फ़र्मों में अनुकूलतम उत्पादन होता है और लागतें कम हो जाती हैं।
- सस्ती वस्तुओं का आयात सम्भव — हैबरलर के विचार में स्वतंत्र व्यापार का यह लाभ होता है कि स्वतंत्र आयात करने से आयातित वस्तुओं की क़ीमतें घट जाती हैं। यह स्वतंत्र व्यापार के पक्ष में बहुत ही सामान्य एवं आकर्षक तर्क है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता होता है एवं सस्ती वस्तुएँ प्राप्त करना चाहता है। इस तर्क की यह कहकर आलोचना की जाती है कि यह तर्क एकपक्षीय है क्योंकि इसमें केवल उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखा गया है, रोज़गार एवं उत्पादकों के हितों की अवहेलना की गयी है, किंतु स्वतंत्र व्यापार के समर्थक उक्त आलोचना का प्रत्युत्तर यह कहकर देते हैं कि स्वतंत्र व्यापार से केवल क़ीमतें नहीं गिरती किंतु संसाधनों का प्रवाह उस दिशा में होता है जहां उनका अधिक प्रतिफल होता है। इससे उत्पादकों को भी लाभ होता है और परिणामस्वरूप रोज़गार दशाएँ अनुकूल हो जाती हैं।
- उत्पत्ति के साधनों को अधिक आय — स्वतंत्र व्यापार के अंतर्गत, उत्पत्ति के साधनों की भी आय बढ़ती है, क्योंकि उन्हें ऐसी इकाइयों में रोज़गार मिलता है जहां उनकी कुशलता अधिकतम होती है। इसके फलस्वरूप मज़दूरी, ब्याज़ एवं लगान, अन्य दशाओं की तुलना में अधिक ऊँचे रहते हैं।
- बाज़ार का विस्तार — स्वतंत्र व्यापार में बेरोक – टोक आयात – निर्यात होने के कारण बाज़ार का विस्तार होता है जिससे अधिक श्रम – विभाजन एवं विशिष्टिकरण सम्भव हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है की उत्पादन अनुकूलतम होता है एवं लागत कम हो जाती है। इससे सारे विश्व को लाभ होता है जबकि स्वतंत्र व्यापार को नियंत्रित करने से विशिष्टिकरण का क्षेत्र सीमित हो जाता है एवं कुल उत्पादन कम हो जाता है।
- राष्ट्रीय आय में वृधि— स्वतंत्र व्यापार में अधिकतम उत्पादन होने का सीधा प्रभाव यह होता है की देश की कुल राष्ट्रीय आय बढ़ती है। अधिकतम उत्पादन इसलिए होता है क्योंकि देश उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनके उत्पादन में वह सर्वाधिक उपयुक्त होता है।
- औद्योगिक विकास सम्भव — अपने औद्योगिक विकास के लिए जिन देशों के पास आवश्यक कच्चे माल की कमी है, वे उसे आयात करके दूसरे देशों से माँग सकते हैं। इससे देशों का औद्योगिक विकास एवं उसके फलस्वरूप आर्थिक विकास हो सकता है। इसके साथ ही देश के कच्चे माल का भी कुशलता से प्रयोग किया जा सकता है।
- पारस्परिक सहयोग एवं सद्भावना — स्वतंत्र व्यापार के कारण विभिन्न व्यापार करने वाले देश आयतों एवं निर्यातों के लिए एक – दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं अतः उनमें पारस्परिक सहयोग एवं सद्भावना की वृधि होती है।
- अधिकतम कल्याण सम्भव — स्वतंत्र व्यापार के अंतर्गत क़ीमत – प्रणाली के कुशलतम ढंग से कार्य करने के फलस्वरूप, साधनों के आबंटन एवं उत्पादन के क्षेत्र में अर्थ – व्यवस्था सर्वोत्तम कुशलता की स्थिति को प्राप्त करती है। अर्थशास्त्र की कल्याणकारी शब्दावली में कहा जा सकता है की देश स्वतंत्र व्यापार में पैरेटो की अनुकूलतम ( Paretian Optimum) स्थिति को प्राप्त कर सकते है और अधिक से अधिक व्यक्तियों के अधिक से अधिक कल्याण कि स्थिति उत्पन्न होती है। इस प्रकार स्वतंत्र व्यापार द्वारा ही अधिकतम सामाजिक लाभ के उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है। किंडलबर्गर के शब्दों में, “ ………समाज के संसाधनों का आबंटन, वस्तुओं का उत्पादन एवं उनका वितरण अनुकूलतम होगा…….. यह समाज में अधिकतम कल्याण उत्पन्न करने में सक्षम है।”
- व्यापार चक्रों पर नियंत्रण सम्भव — स्वतंत्र व्यापार का यह भी लाभ है कि यह व्यापार चक्रों के प्रभावों को न्यून बनाकर अर्थ – व्यवस्था में संतुलन स्थिति बनाये रखता है। मंदी की स्थिति में देश में क़ीमतों के गिर जाने से निर्यातों को प्रोत्साहन मिलता है एवं तेज़ी तथा मुद्रा प्रसार की स्थिति में आयतों को प्रोत्साहन मिलता है।
स्वतंत्र व्यापार के विपक्ष में तर्क (Case Against Free Trade)
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने सर्वोत्तम अथवा अनुकूलतम कुशलता के आधार पर स्वतंत्र व्यापार का समर्थन किया और इसे अनुकूलतम कल्याण के अर्थ में भी ग्रहण कर लिया, परंतु वे यह भूल गए कि कल्याण का सम्बंध केवल उत्पादन कुशलता से नहीं है बल्कि वितरण की कुशलता से भी है। यदि हम केवल उत्पादन के प्रश्न पर ही विचार करें तो यह कहा जा सकता है की स्वतंत्र व्यापार संरक्षण से श्रेष्ठ है, किंतु यह भी सत्य है कि वितरण की समस्या की अवहेलना नहीं की जा सकती। इनके अतिरिक्त, अन्य कई दोष हैं जिनके कारण स्वतंत्र व्यापार की नीति सर्वमान्य नहीं बन पायी। ये दोष अग्र प्रकार हैं:
- प्रतियोगिता के कारण अर्ध-विकसित देशों को हानि — स्वतंत्र व्यापार के कारण सबसे अधिक हानि अर्ध – विकसित देशों को हुई जो विकसित देशों के साथ प्रतियोगिता नहीं कर सके। उदाहरण के लिए, स्वतंत्रता के पूर्व भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा जो स्वतंत्र व्यापार की नीति अपनायी गयी उसके कारण देश के कुटीर उद्योगों का पतन हो गया, क्योंकि वे विदेशी मशीनों की निर्मित वस्तुओं से प्रतियोगिता नहीं कर सके। प्रतियोगिता के कारण ही यूरोप के देशों ने भी स्वतंत्र व्यापार की नीति को समाप्त कर प्रशुल्क एवं आयात करों को अपनाया।
- वितरण पक्ष की अवहेलना — स्वतंत्र व्यापार अनुकूलतम वितरण एवं सामाजिक न्याय के पक्ष पर विचार नहीं करता। स्वतंत्र व्यापार के फलस्वरूप विभिन्न देशों एवं एक ही देश के विभिन्न वर्गों में आय का वितरण असमान हो जाता है अतः वितरण की दृष्टि से स्वतंत्र व्यापार की नीति सर्वोत्तम नीति नहीं है। यह आवश्यक हो सकता है की देश के भीतर एवं विभिन्न देशों में वितरण में सुधार करने के लिए आयात करों द्वारा स्वतंत्र व्यापार को नियंत्रित किया जाए।
- क़ीमत-प्रणाली के दोष — स्वतंत्र व्यापार यह मानकर चलता है की क़ीमत प्रणाली पूर्ण कुशलता के साथ कार्य करती है और इसके कारण वस्तुओं की क़ीमतें प्रत्येक स्थान पर इस तरह समान हो जाती है कि आइल बाद और अधिक विनिमय सम्भव नहीं होता। इसके साथ ही क़ीमत प्रणाली से वस्तुओं की क़ीमतें उनकी सीमान्त लागत (Marginal Cost) के बराबर हो जाती हैं जिससे उत्पादन अनुकूलतम होता है, किंतु ऐसे अनेक कारण जिनसे क़ीमत प्रणाली कुशलता से कार्य नहीं हो पाता जैसे फ़र्म की बाह्य बचतें एवं अमितव्ययताएँ, फ़र्मों अथवा साधनों में प्रतियोगिता का अभाव, इत्यादि।
- पूर्ण रोज़गार की ग़लत मान्यता— स्वतंत्र व्यापार का तर्क एक मान्यता पर आधारित है कि देश में सारे संसाधनों को पूर्ण रोज़गार प्राप्त है, किंतु वास्तविकता तो यह है कि अनेक देशों में अत्यधिक बेरोज़गार की स्थिति है। जब साधन अप्रयुक्त हैं तो आयतों को नियंत्रित कर उनका पूर्ण प्रयोग कर उत्पादन में दृष्टि की जा सकती है। इस आधार पर स्वतंत्र व्यापार का तर्क दुर्बल हो जाता है।
- पूर्ण प्रतियोगिता का अभाव— बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता नहीं, बल्कि अपूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है जिससे उत्पादन अधिकतम नहीं हो पाता। साथ ही एकाधिकारी शक्तियाँ भी सक्रिय होती है जिनके अंतर्गत नियंत्रित उत्पादन के कारण व्यक्तिगत स्वार्थ सामाजिक या राष्ट्रीय हित के ऊपर हो जाता है। यदि साधनों के बाज़ार में अपूर्णता रहती है तो साधनों का उचित वितरण नहीं हो पाता जिससे किंही उद्योगों में निजी लागत सामाजिक लागत से अधिक हो जाती है और किंही उद्योगों में कम हो जाती है।
- स्वतंत्र व्यापार से गलाकाट प्रतियोगिता — स्वतंत्र व्यापार गलाकाट (Cut-Throat Competition) प्रतियोगिता को जन्म देता है। अपने निर्यातों को बढ़ाने के लिए अनेक देश राशिपातन (Dumping) का सहारा लेते हैं जिससे छोटे एवं अर्ध-विकसित देशों को भारी नुक़सान उठाना पड़ता है। इसी कारण इन देशों द्वारा आयतों पर प्रतिबंध लगाने पड़ते हैं।
- राजनीतिक हस्तक्षेप — स्वतंत्र व्यापार का यह परिणाम होता है कि पारस्परिक आर्थिक निर्भरता के साथ हो साथ राजनीतिक स्थिरता एवं स्वतंत्रता के लिए आर्थिक आत्म-निर्भरता भी आवश्यक है। इसी कारण देशों ने संरक्षण की नीति का सहारा लिया।
- शिशु उद्योगों का पतन — स्वतंत्र व्यापार का एक परिणाम यह हुआ कि छोटे – छोटे विकासशील देशों में उद्योगों की स्थापना नहीं हो सकी, क्योंकि ये उद्योग विकसित देशों के उद्योगों से प्रतियोगिता नहीं कर पाते थे अतः पिछड़े देशों ने अपने यहाँ शिशु उद्योगों को संरक्षण देने के लिए स्वतंत्र व्यापार की नीति को छोड़ दिया।
स्वतंत्र व्यापार के उक्त दोषों के कारण एक समय ऐसा आया जब विश्व में संरक्षण की लहर फैल गयी और प्रतिष्ठा अर्थशास्त्रियों की स्वतंत्र व्यापार की नीति लड़खड़ाकर समाप्त हो गयी।