अर्थमिति की परिभाषा (Definition of Econometrics)

ज्ञान का वह क्षेत्र जो संख्यात्मक रूपों में आर्थिक सिद्धांतों के मूल्यांकन में सहायक होता है, अर्थमिति कहलाता है।

‘अर्थमिति’ नाम का परिचय 1926 में नार्वे के एक अर्थशास्त्री एवं सांख़िकीविद् रैगनर फ्रिश्च ने कराया था। यह पद वास्तव में ‘बायोमेटरिक्स’ पर आधारित है जो 19वीं शताब्दी के अंत में जीव-विज्ञान के क्षेत्र में सांखियकिय विधियों के प्रयोग को इंगित करने के लिए अस्तित्व में आया था।

अर्थमिति वह विज्ञान है जो आर्थिक सिद्धांत एवं आर्थिक सांख्यिकीय को जोड़ता है तथा गणितीय एवं सांख्यिकीय विधियों की सहायता से इस बात की जाँच करता है की जाँच करता है कि आर्थिक सिद्धांत द्वारा विस्थापित सामान्य नियम आनुभविक आधार पर खरे उतरते हैं या नहीं। इस प्रकार अर्थमिति अर्थशास्त्र, गणित तथा सांख्यिकी के उपयोग द्वारा सैद्धांतिक आर्थिक नियमों को सशक्तता प्रदान करती है।

यद्यपि माप करना ही अर्थमिति का मुख्य कार्य है किंतु अर्थमितिज्ञों द्वारा बताया गया इसका क्षेत्र कहीं अधिक व्यापक है। अतः अर्थमिति वह सामाजिक विज्ञान है जिसमें किसी भी आर्थिक घटना का विश्लेषण करने के लिए आर्थिक सिद्धांत, गणित एवं सांख्यिकीय अनुमिति का उपयोग किया जाता है। 

गोल्डबर्गर के अनुसार, “अर्थमिति को सामाजिक विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें आर्थिक सिद्धांत, गणित एवं सांख्यिकीय अनुमिति के उपकरणों को आर्थिक घटनाक्रम का विश्लेषण करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।”

सेम्युलसन, कूपमेंस एवं स्टोन के अनुसार, “अर्थमिति को वास्तविक आर्थिक घटनाक्रम के मात्रात्मक विश्लेषण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो की सिद्धांत एवं अवलोकन के संयुक्त विकास पर आधारित हो, अनुमिति की उचित विधियों द्वारा सम्बंधित हो।”

टिंटनर के अनुसार, “अर्थमिति में गणितीय अर्थशास्त्र द्वारा निर्मित मॉडलों को आनुभविक आधार देने एवं सांख्यात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए गणितीय सांख्यिकी के अनुप्रयोग का समावेश किया जाता है।”

इंट्रिलीगटोर के अनुसार, “अर्थमिति अर्थशास्त्र की वह शाखा है जिसका सम्बंध आर्थिक सम्बन्धों के आनुभविक आकलन से होता है। ‘इकानमेट्रिक्स’ शब्द में ‘मेट्रिक’ माप को सम्बंधित करता है। इस प्रकार अर्थमिति गणितीय अर्थशास्त्र द्वारा मापित आँकड़ों के साथ कार्यशील होने का ही दूसरा नाम है।”

टिनबर्जन के अनुसार, “अर्थमिति को सैद्धांतिक ढंग से बनायी गयी अवधारणाओं के सांख्यिकीय अवलोकन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है अथवा वैकल्पिक रूप में अर्थमिति गणितीय अर्थशास्त्र द्वारा मापित आँकड़ों के साथ कार्यशील होने का ही दूसरा नाम है।”

अर्थमितिज्ञों द्वारा दी गयी उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा सकता है की अर्थमिति अर्थशास्त्र, गणित तथा सांख्यिकीय का एक संयोग है जिसका उद्देश्य विभिन्न आर्थिक सम्बन्धों के प्राचलों के लिए सांख्यात्मक मान प्राप्त करना और आर्थिक सिद्धांतों की सत्यता की जाँच करना है। इस प्रकार अर्थमिति आर्थिक विश्लेषण एवं अनुसंधान की एक ऐसी विशेष विधि है जिसके द्वारा आर्थिक सिद्धांतों को गणितीय रूप देकर आर्थिक घटनाओं के आनुभविक प्रेक्षणों से जोड़ा जाता है। आर्थिक सांख्यिकी अर्थमिति के लिए संख्यात्मक आँकड़े उपलब्ध कराती है और अर्थमिति की सफलता सही आँकड़ों की उपलब्धता पर ही निर्भर करती है।

टिनबर्जन के शब्दों में, “अर्थमिति विज्ञान के उस क्षेत्र का नाम है जिसमें, गणितीय अर्थशास्त्र तथा गणितीय सांख्यिकी का मिश्रित रूप में उपयोग किया जाता है। इस प्रकार अर्थमिति एक तरह से विज्ञान की उपर्युक्त दो शाखाओं के बीच एक सीमा रेखा है जिसमें विज्ञान की इन दोनों शाखाओं के गुण एवं दोष डोनो का समावेश हो जाता है। इससे प्राप्त होने वाला गुण यह है कि विज्ञान के दोनो शाखाओं के नये – नये संयोग सामने आते हैं। दूसरी ओर, इससे हानि यह होती है की अर्थमिति की विधियों में कुशलता प्राप्त करने के लिए विज्ञान की ऊपरी दोनों शाखाओं का ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है जो कि विद्यार्थियों के लिए ग्रहण करना कठिन होता है।”

अर्थमिति को सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दो शाखाओं में बाँटा जा सकता है। सैद्धांतिक अर्थमिति में अर्थमितिक मॉडलों द्वारा वर्णित आर्थिक सम्बन्धों के माप हेतु उपयुक्त विधियों के विकास का अध्ययन किया जाता है। इन विधियों को दो समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहले समूह में, एकल-समीकरण विधियाँ सम्मिलित होती है जिनकी सहायता से एक समय में एक ही सम्बंध को आकलित किया जा सकता है। इसी प्रकार दूसरे समूह में, युगपत-समीकरण विधियाँ सम्मिलित होती है जिनको मॉडल के अंतर्गत सभी सम्बन्धों को आकलित करने के लिए साथ-साथ प्रयुक्त किया जाता है। साथ ही सैद्धांतिक अर्थमिति के अंतर्गत अर्थमितिक विधियों में निहित मान्यताओं और उनकी विशेषताओं का भी अध्ययन किया जाता है।

व्यावहारिक अर्थमिति में अर्थमितिक अनुसंधान के प्रायोगिक महत्त्व का उल्लेख किया जाता है। व्यावहारिक अर्थमिति में सैद्धांतिक अर्थमिति द्वारा विकसित अर्थमितिक विधियों का उपयोग करके विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के सम्बन्धों का सत्यापन एवं भविष्यवाणी का उल्लेख होता है। वर्तमान में अर्थमिति की सहायता से बाज़ार माँग एवं पूर्ति, उत्पादन-फलन, लागत-फलन, उपभोग एवं निवेश-फलन आदि क्षेत्रों में अधिकाधिक आनुभविक अध्ययन किए जा रहे हैं। किसी अर्थव्यवस्था में नीति-निर्माताओं के लिए इन अध्ययनों से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सांख्यात्मक परिणाम प्राप्त करना व्यावहारिक अर्थमिति से ही सम्भव हो पाया है।  

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