क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (सरकारी बैंक) हैं जो भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के तहत स्थापित किए गए थे। इनका विशेष उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे एवं सीमांत किसानों, कृषि मजदूरों, शिल्पकारों तथा लघु उद्यमियों को ऋण और अन्य बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध कराना है।
सरल शब्दों में कहें तो, आरआरबी वो विशेषीकृत ग्रामीण बैंक हैं जो उन गाँवों में क्रेडिट की कमी को पूरा करने के लिए बनाए गए थे जहाँ बड़े सरकारी वाणिज्यिक बैंक को चलाना फायदे का सौदा नहीं लगता था।
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आधिकारिक एक-पंक्ति परिभाषा:
“क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक वित्तीय संस्थान हैं जो कृषि और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों को ऋण और अन्य सुविधाएं प्रदान करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के उद्देश्य से स्थापित किए गए हैं।” – आरआरबी अधिनियम, 1976 (RRB Act, 1976)
आरआरबी अधिनियम, 1976 (प्रस्तावना) के शब्दों में:
“ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, व्यापार, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादक गतिविधियों के विकास के उद्देश्य से, विशेष रूप से लघु और सीमांत किसानों, कृषि मजदूरों, कारीगरों और लघु उद्यमियों को ऋण और अन्य सुविधाएं प्रदान करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना…”
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और स्थापना
स्थापना वर्ष: 1975–76
कानूनी आधार: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976
सिफारिश समिति: नरसिम्हम कार्य समूह (1975)
पहले पांच आरआरबी की स्थापना: 2 अक्टूबर 1975 (गांधी जयंती) को प्रथम पांच आरआरबी की स्थापना की गई, जिनमें उत्तर प्रदेश में प्रणव ग्रामीण बैंक (सिंडिकेट बैंक द्वारा प्रायोजित) और अन्य शामिल थे।
| वर्ष | घटना |
|---|---|
| 1975 | नरसिम्हम समिति ने आरआरबी की सिफारिश की |
| 1976 | आरआरबी अधिनियम पारित; पहले आरआरबी ने कार्य करना शुरू किया |
| 1994–2005 | भारी नुकसान → कई आरआरबी कमजोर हो गए |
| 2005–2010 | विलय प्रक्रिया शुरू (196 आरआरबी से घटाकर 2010 तक 82 कर दिए गए) |
| 2019–2020 | विलय का दूसरा चरण: 82 → 43 आरआरबी |
| 2024 (वर्तमान) | भारत में केवल 43 आरआरबी कार्यरत हैं (31 मार्च 2024 तक) |
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्वामित्व संरचना
स्वामित्व अनुपात (2019 संशोधन के बाद):
| हितधारक | हिस्सेदारी प्रतिशत |
|---|---|
| भारत सरकार | 50% |
| प्रायोजक बैंक (सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक) | 35% |
| राज्य सरकार | 15% |
| कुल | 100% |
यह 50:35:15 संरचना 2019–20 में लागू की गई थी (पहले यह 50:35:15 थी, लेकिन भारत सरकार की पूंजी चरणों में बढ़ाई गई)।
प्रायोजक बैंक क्या है?
प्रत्येक आरआरबी को एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक द्वारा प्रायोजित किया जाता है (जैसे कि एसबीआई, पीएनबी, या बैंक ऑफ बड़ौदा)। प्रायोजक बैंक की भूमिका केवल पूंजी (35%) प्रदान करना ही नहीं है, बल्कि आरंभिक वर्षों के दौरान आरआरबी को प्रबंधकीय सहायता, कर्मचारी प्रशिक्षण और वित्तीय परामर्श प्रदान करना भी है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के उद्देश्य
आरआरबी अधिनियम, 1976 की प्रस्तावना में उद्देश्यों की सूची दी गई है। इन चार बिंदुओं को याद रखें — ये सीधे 4-अंक और 8-अंक के प्रश्नों में आते हैं:
1. ऋण अंतराल को पाटना: दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण सुविधाएं प्रदान करना जहां वाणिज्यिक बैंकों को संचालन करना लाभदायक नहीं लगता।
2. पूंजी पलायन को रोकना: आरआरबी से पहले, ग्रामीण बचत अक्सर शहरी बैंक शाखाओं में जमा की जाती थी और शहरी उद्योगों को उधार दी जाती थी। आरआरबी यह सुनिश्चित करते हैं कि ग्रामीण जमा राशि का उपयोग ग्रामीण विकास के लिए किया जाए।
3. साहूकारों पर निर्भरता कम करना: छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों को गैर-संस्थागत निजी साहूकारों के चंगुल से मुक्त करना जो अत्यधिक ब्याज दरें वसूलते हैं।
4. रोजगार सृजन: कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प और छोटे व्यापार को वित्त पोषित करके गांवों में उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्य
कार्यों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
A. प्राथमिक कार्य (मुख्य बैंकिंग कार्य)
- जमा स्वीकार करना (बचत, चालू, सावधि, आवर्ती)
- ऋण/अग्रिम प्रदान करना (प्राथमिकता क्षेत्र उधार अनिवार्य है – कुल ऋण का न्यूनतम 75%)
- प्रेषण सुविधाएं, पेंशन भुगतान, लॉकर सुविधाएं
- सरकारी व्यवसाय (करों का संग्रह, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण – DBT)
B. विकासात्मक कार्य (आरआरबी के लिए विशिष्ट)
- लघु और सीमांत किसानों, काश्तकार किसानों, बटाईदारों को वित्तपोषण
- कारीगरों, ग्रामीण उद्योगों, कुटीर उद्योगों को वित्तपोषण
- स्वयं सहायता समूहों (SHGs), संयुक्त दायित्व समूहों (JLGs) को वित्तपोषण
- सरकार प्रायोजित योजनाओं का कार्यान्वयन (PMJJBY, PMSBY, APY, MUDRA, KCC, आदि)
- ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय साक्षरता और बैंकिंग आदतों को बढ़ावा देना
आरआरबी बनाम वाणिज्यिक बैंक: एक तुलनात्मक विश्लेषण
(Regional Rural Bank Vs. Commercial Banks)
| मापदंड | क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) | वाणिज्यिक बैंक (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक) |
|---|---|---|
| कार्य क्षेत्र | स्थानीय/क्षेत्रीय (विशिष्ट जिले) | राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय |
| लक्षित दर्शक | ग्रामीण गरीब, कारीगर, छोटे किसान | आम जनता, कॉर्पोरेट, बड़े उद्योग |
| स्वामित्व | संयुक्त (केंद्र + राज्य + प्रायोजक बैंक) | अधिकांश सरकार के पास (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए) या निजी शेयरधारक |
| विनियमन | आरबीआई द्वारा विनियमित और नाबार्ड द्वारा पर्यवेक्षित | आरबीआई द्वारा विनियमित और पर्यवेक्षित |
| ब्याज दरें | जमा पर अक्सर थोड़ी अधिक होती हैं ताकि ग्रामीण बचत को आकर्षित किया जा सके | मानक बाजार दरें |
| कर्मचारी भर्ती | क्षेत्रीय/स्थानीय फोकस (भाषा प्रवीणता आवश्यक) | अखिल भारतीय चयन |
आरआरबी द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएं (आलोचनात्मक विश्लेषण)
अपनी सफलता के बावजूद, आरआरबी कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
1. उच्च परिचालन लागत: दूरदराज के क्षेत्रों में कई छोटे खातों की सेवा करना उत्पन्न व्यवसाय की मात्रा की तुलना में महंगा है।
2. अनर्जक परिसंपत्तियां (एनपीए): फसल विफलता के कारण कृषि क्षेत्र में ऋण वसूली अक्सर कठिन होती है, जिससे उच्च एनपीए होते हैं।
3. निवेश का सीमित दायरा: एक विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित होने से जोखिमों को विविधता देने की क्षमता सीमित हो जाती है।
4. दोहरा नियंत्रण: आरआरबी की देखरेख नाबार्ड द्वारा की जाती है, आरबीआई द्वारा विनियमित किए जाते हैं, और आंशिक रूप से राज्य/केंद्र सरकारों और प्रायोजक बैंकों के स्वामित्व में हैं। यह बहु-एजेंसी नियंत्रण कभी-कभी प्रशासनिक देरी की ओर ले जाता है।